गुलशन बावरा ने हिंदी सिनेमा को ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’ से लेकर ‘यारी है ईमान मेरा’ तक गाने दिए हैं। उनकी कलम से लगभग हर अवसर के लिए गीत निकले। गुलशन बावरा शुरुआती दिनों में क्लर्क का काम करते थे। लेकिन फ़िल्मों में गीत लिखने की चाह रखते थे। कोई पहचान न होने के कारण उन्हें फ़िल्मों में ख़ूब संघर्ष भी करना पड़ा। इसके बाद 1959 में आई फ़िल्म सट्टा बाज़ार से उन्हें सफ़लता हाथ लगी।
यही वो फ़िल्म थी जिसके ज़रिए गुलशन कुमार मेहता बन हए गुलशन बावरा। फ़िल्म समीक्षक श्रीराम ताम्रकर ने बताया कि ‘फ़िल्म ‘सट्टा बाज़ार’ के वितरक शांतिभाई पटेल, गुलशन के काम से ख़ासे खुश थे। रंग-बिरंगी शर्ट पहनने वाले लगभग 20 साल के युवक को देख उन्होंने कहा कि मैं इसका नाम गुलशन बावरा रखूंगा। यह बावरे (पागल व्यक्ति) जैसा दिखता है।’’
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उन्होंने बताया ‘‘फिल्म प्रदर्शित होने पर उसके पोस्टर्स में सिर्फ तीन लोगों के नाम प्रमुखता से प्रदर्शित किए गए। एक फिल्म के निर्देशक रविंद्र दवे, संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी और बतौर गीतकार गुलशन बावरा।’
बचपन में अक्सर मां के साथ भजन कीर्तन गाने से उनके मन में भाव भरे गीतों का प्रस्फुटन हुआ होगा। मां धार्मिक थीं। इसका असर पड़ा होगा। गुलशन कुमार मेहता का जन्म 12 अप्रैल 1937 को लाहौर के शेखपुरा में हुआ था। आजादी के समय यह महज 10 साल के थे। इस उम्र में बालक अपने जीवन में घटी घटनाओं को समझने लगता है। विभाजन के दंगे से मां-पिता को खोने वाले गुलशन के लिए आज़ादी एक त्रासदी रही।
विभाजन के बाद दिल्ली आकर यहां स्नातक की पढ़ाई की। इसके बाद मुंबई में गए और वहां संघर्ष शुरू हुआ। रेलवे में लिपिक की नौकरी की लेकिन मन गीतों में ही डूबा रहा। फिल्मों में शुरुआती दौर में भटकन ही मिली। हौसला नहीं हारा। करीब 7 सालों के संघर्ष के बाद गुलशन की किस्मत का दरवाजा खुला। उनकी मुलाकात कल्याण जी-आनंद जी से हुई।
उन्हें मनोज कुमार की फिल्म उपकार के गीतों को लिखने का मौका मिला। फिल्म देशभक्ति पर आधारित थी। काफी सुपरहिट रही। बावरा भी इस फिल्म के गीतों की वजह से बॉलीवुड में चर्चित हो गए। गुलशन ने मेरे देश की धरती सोना उगले उगले गीत जब मनोज कुमार को गाकर सुनाया तो मनोज कुमार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
उपकार के अलावा गुलशन कुमार ने ज़ंजीर, पवित्र पापी, विश्वास, सत्ते पे सत्ता आदि फिल्मों के गीत लिखे। गुलशन बावरा का 7 अगस्त 2009 को निधन हो गयाा।
दोस्ती, रोमांस, मस्ती, ग़म- जीवन के हर रंग के गीतों को उन्होंने अल्फाज़ दिए। ज़ंजीर का ‘यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी’ दोस्ती की दास्तां बयां करता है तो मस्ती के आलम में डूबा ‘दुक्की पे दुक्की हो या सत्ते पे सत्ता’ भी उन्होंने लिखा। बिंदास प्यार करने वालों के लिए ‘खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे’ हो या प्यार की कसमें खाते दिलों के लिए ‘कसमे वादे निभाएंगे हम’ हो। उनके पास हर मौके के लिए गीत था। यारी है ईमान के लिए उन्हें दूसरी बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिया गया था।
दीपाली अग्रवाल