मोदी विरोधियों के बीच, हिटलर से तुलना करने की प्रवृत्ति देखी गयी है। लोकतांत्रिक चुनाव जीतकर आये हिटलर के तानाशाह बन जाने, विरोधियों को चुप या खत्म कर देने, भयंकर प्रोपगंडा और नफरती राजनीति की वजह से हिटलर को मोदी से जोड़कर देखने की आदत है। ये गलत है।
इस बहस को खत्म करने का वक्त आ गया है।
हिटलर की सत्ता दो हिस्सों में देखी जा सकती है। 1933 से 1939 का शांतकाल, और उसके बाद युध्द। नरेद्र मोदी के बचे हुए दौर में संभव है कि छोटी मोटी सर्जिकल स्ट्राइक होती रहे, मगर हिटलर की तरह भूगोल और इतिहास बदलने वाले के युद्ध की संभावना, परमशून्य है। ऐसे में हिटलर के पहले 6 साल के शांतकाल की मोदी के 7 साल के साथ ही तुलना हो सकती है।
1933 में हिटलर के सत्तारोहण के वक्त जर्मनी गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी के चरम पर था। 1929 के बाद वैश्विक मंदी एक ओर थी, दूसरी ओर वर्साइ की संधि के प्रतिबंध। मोदी को इसके मुकाबले दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था मिली।
हिटलर अच्छे दिन के वादे पर आया था। बेरोजगारी प्रथमिकता थी। धड़ाधड़ पब्लिक वर्क्स शुरू हुए। करीब 7000 किलोमीटर नये हाइवे, नई रेल लाइन्स, स्कूल, कॉलेज, प्रशासनिक भवन बनने लगे। अचानक ही निर्माण उद्योग में जॉब्स शुरू मिलने लगे। हमारे देश मे बूम पर रहा निर्माण सेक्टर, उल्टा बैठ चुका है।
हिटलर को छोटे और मझोले व्यवसायों का समर्थन था। उसने पलटी मारी और देश मे 40 हजार डॉलर से कम के सारे उद्योग डीरजिस्टर कर खत्म कर दिए। पर इन तमाम लोगो को बडे उद्योगों के चैनल में सेट कर दिया। हमारे यहां छोटे मझोले व्यापारी का व्यापार बड़ी कम्पनियां खा रही हैं। सरकार को कोई मतलब नही है।
हिटलर ने तमाम सरकारी उपक्रम, नाजी पार्टी समर्थक उद्योगपतियों को बेच दिये। रेलवे, बैंक, स्टील, इंश्योरेंस, पेट्रोलियम सब मुट्ठी भर कारपोरेट के हाथ मे। लेकिन डिविडेंट (मालिकों की जेब मे जाने वाला मुनाफा) 6% पर फिक्स कर दिया।
कम्पनियों को बैंक से कर्ज, सरकार से ऑर्डर मिलते, सुनिश्चित मुनाफा मिलता, लेकिन निर्धारित मुनाफे से ज्यादा पैसा, सरकार को वापस करना पड़ता था।
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उन्हें नए प्लांट्स, नई तकनीक, नए अविष्कार पर इन्वेस्ट करना था उन जरूरतों की ओर, जिस तरफ देश की जरूरत हो। सीधा मतलब ये, की हिटलर की मुट्ठी में सारे उद्योगपति थे, उद्योगपतियों की औकात हिटलर को नचाने की नही थी। हमारे यहां का हाल आप जानते हैं।
हिटलर ने मजदूर यूनियन बैन किये। स्ट्राइक ( जो मजदूर करते है) और तालाबंदी ( जो मालिक करते हैं) गैर कानूनी कर दिये। काम के घण्टे बढ़ा दिये। लेकिन प्रोडक्शन इन्सेंटिवाइज किया। एवरेज इनकम बढ़ी, ट्रेनिंग, स्किल औऱ पेमेंट बढ़े। मजदूरों की आय में 20% और मैनजर्स कि इनकम 50% तक बढ़ी। हमारे यहां फैक्ट्रियां अपनी कैपेसिटी का 50-60 उत्पादन करने को विवश हैं। मैनेजर और स्किल्ड कर्मी निकाले जा रहे हैं।
हिटलर का किसान खास फायदे में थे। क्योकि हिटलर आत्मनिर्भरता का प्रेमी था। उसे मालूम था कि वह युध्द करेगा, और खाद्य में आत्मनिर्भर होना चाहिए। उसने चार साल में किसान की इनकम डबल कर दी। सब्सिडी, एश्योर्ड प्राइज और मेकेनाइज फार्मिंग से यह चमत्कार किया। हमारे किसान अपना मजाक बनवाकर, राजधानी की सीमाओं पर सूखे मुंह, मीडिया अटेंशन की बाट जोह रहा हैं।
हिटलर की इंडस्ट्रियल बुम में बड़ा हिस्सा युद्ध सामग्री का था। वर्साय की ट्रीटी को ठेंगा दिखाकर हिटलर ने खुलेआम जर्मनी की सेना बढ़ानी शुरू की। बंदूक, टैंक, हवाई जहाज, गोले बारूद, पनडुब्बी, फ्रिगेट, डिस्ट्रॉयर, वॉरशिप.. जर्मनी छह साल में यूरोप की ऐसी ताकत बन गया कि उससे आंखे मिलाने की किसी की हिम्मत न थी।
हमारे यहां लैंड हुए 4 रफेल के बदले, सेना का आकार, पेंशन , वेतन घटाने की जुगत है।
हिटलर की इकॉनमी पांच ही साल में जो नेगेटिव थी, 10% की ग्रोथ से दौड़ रही रही। बेरोजगारी 30% से शून्य पर आ चुकी थी। हम 10% से माईनस में गए। बेरोजगारी 3 से 30% हो चुकी।
हिटलर के पांच साल में, जर्मनी के घर घर मे, जनता की कार याने वोक्सवैगन खरीदी जा रही थी। हिटलर पहली बार किश्तों में खरीद का फंडा लाया। हमारे यहां किस्तें छाती का बोझ हो चुकी हैं। कारो की बिक्री छह साल में हर साल घटी है।
हिटलर के हर घर मे जनता का रेडियो,याने वोक्सएम्फेन्निजर रखा था। यहां आपको, अपने डेटा से “मन की बात” सुननी है। हिटलर के देश मे शादी करने वाले को 1000 डॉलर मिलते, बच्चा होने पर 250।
पांच बच्चे पैदा करने वाली महिला को ताम्र पदक और आठ से अधिक बच्चों पर स्वर्ण पदक। यहां बात बात अधिक जनसँख्या का रोना ऐसा है, जैसे विगत सरकारो के वक्त, ये जनसँख्या थी ही नही।
हिटलर जहां जाता, लोग उसके पीछे दीवाने थे। उसके भाषण सुनते, उसे प्यार करते। इसलिए कि वो जो कहता था, करके दिखाता था। जब उसने युध्द का आव्हान किया, हजार साल तक राएख का वादा किया, तो लोगो मे भरोसा किया।
आम जर्मन काम छोड़, बन्दूक लेकर दुनिया जीतने निकल पड़ा। विलियम शीरर लिखते हैं, कि जब जर्मन सिपाही लड़ने को बर्लिन से निकले, तब उनकी फौज की तरह तंदुरुस्त, सुदर्शन, डिस्प्लीण्ड, इक्विपड, और आत्मविश्वास से भरी सेना पूरे यूरोप नही थी।
लाख बुरा था हिटलर। पावर हंगरी, प्रोपगंडा बाज, झूठा, नफरती, हत्यारा.. मगर कायर डरपोक नही था। कभी भीख नही मांगी। मोर्चे पर लड़ा था। उसने पहले विश्वयुद्ध में दो-दो आयरन क्रॉस जीते थे।
नेता के रूप में उसने जर्मन एथनिक नेशन की किस्मत छह साल में पलटकर रख दी थी। असल मे हिटलर में रशिया पे हमला न किया होता, या जापान ने अचानक यूएस को युध्द में न घसीटा होता, तो हिटलर दुनिया का सबसे पूजित नेता होता। यूरोप एक देश होता उसका एक डिक्टेटर।
मोदी उसके तौर तरीकों को अपनाते लग सकते है, मगर उससे ज्यादा वक्त और बेहतर परिस्थितियां पाने के बावजूद, नतीजों में वह हिटलर के आसपास भी नही फटकते। इसलिये भाइयो और बहनों, नेवर बिलिव दैट मोदी इज एनी क्लोज टू हिटलर।
ये झूठ है, झूठ है, झूठ है।
मनीष सिंह