जुलाई १९२१ में सीपीसी की स्थापना हुई थी, तब इसमें लगभग ५० पार्टी सदस्य थे जिनका प्रतिनिधित्व १३ प्रतिनिधि करते थे, और शुरुआत में, मार्क्सवाद चीन में व्यापक रूप से स्वीकृत विचार नहीं था क्योंकि यह देश की पारंपरिक संस्कृति से बहुत अलग था बाद में, इसे चीनी विशेषताओं के साथ एकीकृत किया गया।
हालांकि इसके एक साल पहले भारत में कम्यूनिस्ट पार्टी बनी परन्तु यह पार्टी शुरू से ही भटकावों का शिकार रही है यह पार्टी भारत की विशेषताओं के साथ कभी तालमेल नहीं बना पाई। तेलंगाना किसान विद्रोह(1946-52) तथा नक्सलवाड़ी किसान विद्रोह को अलग कर दें तो लगभग पूरा इतिहास ही शर्मनाक रहा है।
चीन की जनता ने माओ को अपनाया, हमने भगत सिंह को छोड़ कर गांधी को अपनाया उसका परिणाम सामने है। सन् 1947 में भारत आजाद(?) हुआ, उसके 2 साल बाद सन 1949 में चीन आजाद हुआ। तब केवल 10 देश हमसे आगे थे, जबकि चीन से आगे 40 देश थे।
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पूंजीवाद का रास्ता पकड़कर आज हम कहां हैं और समाजवाद का रास्ता पकड़ कर आज चीन कहां है देख लीजिए। हम 74 साल में भूख और कुपोषण की समस्या तक से नहीं निपट पाये, जबकि चीन ने इतनी विराट जनसंख्या को भुखमरी गरीबी से पूरी तरह उबार कर विकसित देश बना दिया। चीन 2011 में औद्योगिक उत्पादन में अमेरिका तक को पछाड़कर नं.1 पर आ गया। सन 2014 में “क्रयशक्ति समता” के अनुसार चीन 17.8 ट्रिलियन डालर के साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था(17.4) को पछाड़ कर नं.1 पर आ गया।
हालांकि “नामिनल” जीडीपी के मामले में अभी अमेरिका से थोड़ा पीछे है। मगर वह अमेरिका को दिया गया अपना कर्ज मांग ले तो अमेरिका दिवालिया हो जायेगा। अमेरिका जहां 136 देशों में फैले अपने 800 फौजी अड्डों के बल पर चीन की घेरेबंदी कर रहा है वहीं चीन अपने “बेल्ट एन्ड रोड इनीशिएटिव” जैसी विराट परियोजना के जरिए अमेरिकी साम्राज्यवाद को घेर रहा है।
आज जहां विश्वपूंजीवाद 2008 से जारी भयानक महामंदी से तबाह होता जा रहा है वहीं चीन की अर्थव्यवस्था लगातार 6से10% के अनुपात से बढ़ती जा रही है।अभी हाल ही में कोरोना महामारी में हमारी सरकार ने आपदा में अवसर की तर्ज पर सारे देशी-विदेशी पूंजीपतियों को हमारा खून चूसने के लिए खुली छूट दे दिया था जबकि चीन की सरकार ने अपने नागरिकों को हर तरह से बचाते हुए दूसरे सैकड़ों देशों की मदद किया। ऐसी अनगिनत उपलब्धियों के साथ चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी ने शानदार सौ साल पूरे किए।
72 साल पहले, जब चीन आजाद हुआ था तब बहुत से लोगों को आशावादी भविष्यवाणी करने पर विश्वास नहीं होता था कि एक गरीब, बूढ़ा और कमजोर देश जिसे पश्चिमी उपनिवेशवादियों द्वारा बार-बार अपमानित किया गया था और जिसे “पूर्वी एशिया का बीमार आदमी” कहा गया था,
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जिसे मच्छरों का देश, वेश्याओं का देश एवं अफीमचियों का देश कह कर बदनाम किया जाता था, वह तमाम झंझावातों को झेलते हुए कैसे एक महाशक्ति बन सकता है। सिर्फ 72 वर्षों के शासन काल में कई क्षेत्रों में पश्चिमी देशों को प्रतिस्पर्धा में परास्त कर सकता है।
चीनी कम्युनिस्टों ने जब अपनी क्रांतिकारी यात्रा शुरू की तब चीनी राष्ट्र ने १०० साल पहले जो दर्जा, गरिमा और गौरव खो दिया था, उसे पुनः प्राप्त करना एक प्रमुख चुनौती थी। चीनी लोगों के अडिग समर्थन और विश्वास के साथ, सीपीसी ने इस लक्ष्य को जल्द ही हासिल कर लिया।
रूस ने समाजवाद का रास्ता छोड़कर पूंजीवाद का रास्ता अपनाया तो खण्ड-खण्ड टूटकर विखर गया। जबकि चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी ने समाजवाद का रास्ता पकड़कर चीन को तरक्की की बुलंदी पर पहुंचा दिया जिससे यह सिद्ध हो गया कि अब सिर्फ समाजवाद ही विकास का रास्ता है। अमेरिका आज समाजवाद के ताप थर-थर कांप रहा है। वह चीन से नहीं बल्कि चिंता से ग्रस्त है।
रजनीश भारती