अम्बेडकर जयंती पर आज ‘जय भीम’ सैनिक देश के ब्राह्मणों को पीने पी-पीकर कोस रहे हैं। उन्हें गालियों का निशाना बनाया जा रहा है। मगर वो इस बात को क्यों भूल जाते हैं कि एक महार बच्चे को भीमराव अम्बेडकर बनाने में ब्राह्मणों का क्या योगदान था?
क्या यह सच नहीं है कि बालक भीमराव को अपने घर में शरण देने वाले उनके शिक्षक पंडित महादेव अम्बेडकर थे? जिन्होंने इस महार बच्चे के लिए न सिर्फ खाने-पीने बल्कि उसके आवास और शिक्षा की भी व्यवस्था की थी। इसके अतिरिक्त उन्हें अपना कुल नाम अम्बेडकर भी प्रदान किया था। अगर पंडित महादेव अम्बेडकर न होते तो भीमराव गलियों की खाक छान रहे होते।
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अम्बेडकर की शिक्षा व्यवस्था बड़ौदा के शासक शाहजी राव गायकवाड़ ने की थी। अगर वो उन्हें वजीफा नहीं देते तो उच्च शिक्षा प्राप्त करना भीमराव के लिए दीवास्वप्न ही रह जाता। यह गायकवाड़ ही थे जिन्होंने विदेश से आने के बाद अम्बेडकर को 50 हजार रुपये मासिक वेतन देकर दीवान का पद प्रदान किया था।
क्या यह सच नहीं है कि अम्बेडकर की पत्नी सविता ब्राह्मण थीं? क्या उसके बलिदान और निष्ठा के कारण अम्बेडकर को महानता का दर्जा प्राप्त करने में सहायता नहीं मिली?
कई लोग यह दावा करते हैं कि भीमराव ने बौद्ध धर्म ग्रहण करके हिन्दुओं पर कोई उपकार किया था। सच तो यह है कि अगर भीमराव मुस्लिम धर्म स्वीकार करते तो वो अपनी दलित राजनीति नहीं कर सकते थे। उस समय मुस्लिम लीग पर जिन्ना और नवाबजादा लियाकत अली खां जैसे बड़े मुस्लिम नेताओं का वर्चस्व था। उनके मुकाबले में अम्बेडकर टिक नहीं सकते थे।
सिख धर्म भी उनके इसलिए राय नहीं आया क्योंकि सिख धर्म दलितों व सवर्णों में कोई भेद नहीं करता। इसलिए वह दलित राजनीति का खेल सिख बनने के बाद खेल ही नहीं पाते। बौद्ध धर्म उन्होंने इसलिए अपनाया ताकि वह विश्व के बौद्धों का समर्थन प्राप्त कर सकें। मैं इस बात की चर्चा करके अम्बेडकर के समर्थकों को आघात पहुंचाना नहीं चाहता कि भीमराव अम्बेडकर के ब्रिटिश सरकार से क्या संबंध थे और देश के स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने भाग क्यों नहीं लिया?
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जब सारा देश सायमन आयोग का विरोध कर रहा था और शेर-ए-पंजाब लाला लाजपत राय ने सायमन आयोग का विरोध करते हुए आत्म बलिदान दिया था तो अम्बेडकर सायमन कमीशन और ब्रिटिश सरकार के साथ क्यों खड़े थे? जलियांवाला बाग हत्याकांड का कभी उन्होंने विरोध किया था? मैं अम्बेडकर के श्रद्धालुओं से इसका उत्तर चाहता हूं।
सच तो यह है कि वोट बटोरने के चक्कर में हर पार्टी अम्बेडकर को महिमामंडित कर रही है। इत्तेहादुल मुस्लिमीन जैसी कट्टरवादी और जमाते इस्लामी और जमीयत उलेमा के मौलाना लोग जय भीम, जय मीम (मुसलमान) का नारा लगाकर दलितों को अपने साथ मिलाना चाहते हैं ताकि वो सत्ता पर कब्जा कर सकें। सवाल यह है कि क्या इस्लाम में दलितों के साथ भेदभाव नहीं किया जाता? क्या वहां हिन्दुओं से भी बदतर जाति प्रथा चालू नहीं है?