बलात्कार और हत्या के अपराध में उम्र कैद की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत सिंह राम रहीम को हरियाणा सरकार ने पिछले दिनों 48 घंटे की पैरोल पर रिहा किया था, ताकि वह गुरुग्राम के एक अस्पताल में भर्ती अपनी बीमार मां से मिल सकें.
पिछले साल अक्टूबर में भी उसे एक दिन की पैरोल मिली थी, पिछली बार की तरह इस बार भी उसकी पैरोल के मामले में हरियाणा सरकार ने काफी गोपनीयता बरती, उसे रोहतक की सुनारिया जेल से निकाल कर कुछ दिन पहले ही इलाज के लिए पीजीआई रोहतक में रखा गया था, फिर उसे पैरोल मिली, यह मामूली बात नहीं है.
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इसके पीछे पंजाब विधानसभा के आगामी चुनाव के सिलसिले में भारतीय जनता पार्टी के एक बड़े राजनीतिक खेल की तैयारियों का संकेत मिल रहा है, भाजपा को यह चुनाव अकेले ही लड़ना है, क्योंकि केंद्र सरकार के बनाए तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एनडीए से अपना दशकों पुराना नाता तोड़ लिया है,
गुरमीत राम रहीम की पैरोल को दो साल पहले ओमप्रकाश चौटाला को मिली पैरोल से जोड़ कर देखा जा सकता है, गौरतलब है कि 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले जेल में बंद पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला को बीमारी के नाम पर लंबी पैरोल मिली थी.
भ्रष्टाचार के मामले में जेल की सजा काट रहे चौटाला ने पैरोल पर जेल से बाहर आने के बाद पूरे हरियाणा का दौरा करते हुए कई रैलियां की थीं, हालांकि उनकी पैरोल औपचारिक रूप से इस शर्त के साथ मंजूर हुई थी कि वे जेल से बाहर निकल कर किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे.
लेकिन चूंकि उनका पैरोल हरियाणा की भाजपा सरकार ने अपने राजनीतिक मकसद से मंजूर किया था, लिहाजा उन्होंने खुल कर रैलियां कीं, उनकी रैलियों का मकसद जाट वोटों को कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ एकजुट होने से रोकना था, भाजपा का यह दांव चुनाव में कुछ हद तक कामयाब भी रहा था,
भाजपा ने जैसा इस्तेमाल चौटाला का किया था, वैसा ही इस्तेमाल अब वह पंजाब में गुरमीत राम रहीम का कर सकती है, चूंकि अगले साल फरवरी-मार्च में पंजाब विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं तो डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख को पैरोल मिलने लगी है.
यह महज संयोग नहीं है कि पिछले दिनों पंजाब के एक गांव में एक महिला सरपंच के पति गुरमेल सिंह खालसा ने कुछ दिनों पहले दसवीं बादशाही गुरुद्वारे में अरदास की थी, इस अरदास में उसने गुरमीत राम रहीम की रिहाई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लंबी उम्र के लिए दुआ की थी.
जिस पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी ने नाराजगी जताई थी, गौरतलब है कि एसजीपीसी और डेरा सच्चा सौदा के बीच हमेशा तनाव भरे रिश्ते रहे हैं,
पंजाब की राजनीति में भाजपा पहली बार अलग-थलग पड़ी है और आगामी विधानसभा चुनाव उसे अकेल ही लड़ना है, भाजपा को मालूम है कि इस बार जाट-सिख किसानों के वोट उसे नहीं मिलना है.
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नए कृषि कानूनों को लेकर जाट-सिख किसान भाजपा और केंद्र सरकार से नाराज हैं, और इन कानूनों के विरोध में ही अकाली दल ने भी भाजपा के साथ अपना दशकों पुराना रिश्ता तोड़ दिया है, इसलिए भाजपा ने पंजाब में इस बार दलित सीएम बनाने का ऐलान किया है, उसने कहा है कि भाजपा की सरकार बनी तो वह दलित सीएम बनाएगी, दूसरी ओर अकाली दल ने दलित उप सीएम बनाने का ऐलान किया है.
पंजाब की इस दलित राजनीति के बीच एक गुरुद्वारे में गुरमीत राम रहीम की रिहाई और नरेंद्र मोदी की लंबी उम्र की अरदास का होना और और राम रहीम को पैरोल मिलना, एक नए राजनीतिक समीकरण का इशारा कर रहे हैं.
यह भी उल्लेखनीय है कि हरियाणा के अलावा पंजाब में भी डेरा सच्चा सौदा के समर्थकों की संख्या काफी बड़ी है और उसमें भी दलित काफी संख्या में हैं, राम रहीम का झुकाव तो वैसे भी भाजपा की ओर ही रहा है, 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी उसने भाजपा का खुलकर समर्थन किया था, उस विधानसभा चुनाव के दौरान तो खुद अमित शाह, कैलाश विजयवर्गीय, अरुण सिंह आदि भाजपा नेता उससे मिलने भी गए थे.
चुनाव के बाद सीएम मनोहरलाल खट्टर कई बार गुरमीत राम रहीम के साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल हुए, उन्होंने उसे हरियाणा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान का ब्रांड एंबसेडर भी बनाया था, 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान हालांकि वह जेल में ही था लेकिन उसके डेरे से जुडे लोगों ने भाजपा का ही समर्थन किया था.
माना जाता है कि 2017 में उसे सजा होने के बाद हर बार पैरोल दिलाने में भी सीएम खट्टर ने विशेष रूचि दिखाई है, इसीलिए माना जा रहा है कि पंजाब विधानसभा के चुनाव से पहले रोहतक की सुनारिया जेल से पैरोल पर उसका बाहर आना होता रहेगा.
(लेखक- अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं)