पीएम केयर्स के तहत कई कंपनियों को वेंटिलेटर की सप्लाई का ठेका मिला है। इसकी गुणवत्ता को लेकर पिछले ही साल हफिंगटन पोस्ट में समर्थ बंसल और अमन सेठी ने विस्तार से छापा था कि कैसे मुंबई के अस्पताल ने वेंटिलेटर लगाने से मना कर दिया। उस मामले में क्या कार्रवाई हुई सार्वजनिक रुप से नहीं पता।
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इसके बाद लगातार ख़बरें छपी हैं कि यह वेंटिलेटर ख़राब है। इसके इस्तमाल में न होने के कारणों में और भी बहुत हैं। जैसे चलाने के लिए स्टाफ़ नहीं है। उसका कोई बजट नहीं दिया गया। कंपनी ने ट्रायल नहीं कराया। ट्रेनिंग नहीं दी।
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लेकिन अगर वेंटिलेटर ही ख़राब क्वालिटी का है तो इसे अहं का सवाल नहीं बनाया जाना चाहिए। लोगों की ज़िंदगी का सवाल है। मशीन को लेकर लेकर जाँच तो हो ही और पीएम केयर्स के मशीनों में जिन मरीज़ों को रखा गया उनका भी रिसर्च हो। जाँच के नाम पर लीपापोती न हो।