शिक्षकों का भले ही सरकार में प्रभाव न हो लेकिन राजनीति में हैं । विधान परिषद में उनकी सीट होती है। शिक्षक कोटे से विधान पार्षद भी होते हैं । इन सबके होते हुए शिक्षकों ने क्या हासिल कर लिया? 1621 शिक्षकों की मौत को सरकार ने मानने से इंकार कर दिया। चुनाव आयोग पर डाल दिया कि तीन शिक्षक मरने की पुष्टि हुई है। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर इस तरह का कोई बयान नहीं है और न स्वतंत्र रुप से सार्वजनिक तौर पर है। बेसिक शिक्षा मंत्री चुनाव आयोग की तरफ़ से बयान दे रहे हैं।
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मुख्यमंत्री के कार्यालय से ट्विट किया गया है कि राजकीय कर्मी की मृत्यु होने पर नियमानुसार परिवार के एक सदस्यों को सरकारी नौकरी दी जाएगी। नियमानुसार का क्या कोई ख़ास मतलब है? क्या नियमों का पेंच लगा कर पाँच को दी जाएगी और बाक़ी को संघर्ष करने के लिए छोड़ दिया जाएगा?
यह अपने आप में भयावह है कि पंचायत चुनावों में भाग लेने गए शिक्षकों में से 1621 की मौत हुई है। इन्हें कोविड हुआ था। क्या पता। संक्रमित हो कर ड्यूटी पर जाने के लिए मजबूर हुए हों और उससे दूसरों को भी संक्रमण हुआ हो। कोविड के समय में चुनाव कराने के लिए आयोग को नई व्यवस्था बनानी होगी। दुनिया के कई देशों ने चुनाव की नई व्यवस्था बनाई। वो व्यवस्था दिखावे की न हो बल्कि लागू कर दिखाए।
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इस तरह से नहीं कि जैसा कि राज्यों और पंचायत के चुनावों में हुआ है। पंचायत और निगम चुनाव स्थगित किए जा सकते हैं। कई राज्यों ने किए भी हैं लेकिन आम चुनाव बंद करना संभव नहीं है। इससे तानाशाही को मौक़ा मिल जाएगा और क्रूर होने का।