नई दिल्ली : ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।’ कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुये युवा सिद्धार्थ राय ने खाँटी गवई अंदाज में एक गांव में जाकर स्वरोजगार की श्रृंखला खड़ी कर दिया जो आज गांव गिराव के युवाओं के लिए एक प्रयोगशाला के रूप में काम करने लगी हैं।
महज डेढ़ एकड़ के परिसर में सिद्धार्थ द्वारा तैयार किया गया गांव ‘खुरपी नेचर विलेज’ आज गांव गिराव में स्वरोजगार की संभावनाओं के प्रयोगशाला के रूप में काम करने लगा है।
ये भी पढ़ें : लेख : गुजरात में अस्पतालों के बाहर गुजरात मॉडल खोज रहे हैं गुजरात के लोग, मिल नहीं रहा : रवीश कुमार
दिल्ली और बैंगलोर जैसे बड़े शहर से उच्च शिक्षा प्राप्त सिद्धार्थ राय अच्छे पैकेज पर जॉब कर रहे थे। लेकिन वर्ष 2014 में चुनाव के दौरान गाजीपुर आ गए। चुनाव बाद तत्कालीन रेल राज्य मंत्री व संचार मंत्री मनोज सिन्हा के निजी सचिव बन गए।
कम उम्र में ही बड़े प्रोफाइल का पद पाए जाने के बावजूद सिद्धार्थ ने अपने पैर जमीन पर ही रखें व कर्तव्य परायणता अपनी मृदुभाषीता से सबके चहेते बने रहे।
सिद्धार्थ शुरू से ही कुछ नया करने को तत्पर रहते थे। ऐसे में उनके द्वारा विकसित गाजीपुर की परिकल्पना को साकार करने के क्रम में अल्प संसाधन में स्वच्छ व सुंदर गाजीपुर के लिए सतत प्रयत्नशील रहे।
लगातार नगर गलियों व घाटों की सफाई करने के साथ ही दलित निर्बल असहाय बच्चों की पढ़ाई के लिए भी प्रयासरत लगे रहे। इन सभी कार्यों में खुद उनका प्रोफाइल बड़ा होने के चलते कभी कोई समस्या नहीं आई। लेकिन एक बड़ा मुद्दा आया स्वरोजगार का।
ऐसे में सिद्धार्थ राय द्वारा गाजीपुर वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग से लगभग 5 किलोमीटर दूर अगस्ता गांव के पास खेतों के बीच में अपने मित्र अभिषेक की मदद से लगभग डेढ़ एकड़ जमीन में गाय पालन का शुरू शुरूआत किया। जिससे उन्होंने दुग्ध व्यवसाय का छोटा सा कार्य शुरू किया।
ये भी पढ़ें : क्या पत्रकार ही पत्रकार के दुश्मन बन गए?
धीरे-धीरे अगल बगल के गांव वालों को गाय और भैंस के लिए आर्थिक मदद उपलब्ध कर उनसे भी दूध लेने का कार्य शुरू कर दिए। एमबीए की पढ़ाई करने के बाद बड़ी कंपनी में अच्छे पैकेज पर काम करने वाले सिद्धार्थ जहां लगातार पांच वर्षों तक केंद्रीय मंत्री के निजी सचिव के रूप में अपनी पहचान हाई प्रोफाइल व्यक्तित्व के रूप में बना चुके थे।