“सिनेमा समाज का दर्पण है”
मेरे ये कहने पर कि चलो कम से कम रिलेवेंस सब्जेक्ट तो समझा न कुछ लोगो ने , तभी तो “मुल्क” मूवी बनायी गयी है । तो आपका ये कहना कि जोली एलएलबी2 और शाहिद जैसी फिल्मे भी लायी गयी थी , क्या हुआ फिर, लोगो ने तो उतना ही देखा जितना तय किया था, इतने सीरियस सब्जेक्ट के बावुजूद लोग “गो पागल”गाने तक ही सीमित रहे । उस पर यकीनन मैने यही कहना था और कहा भी कि कुछ लोग है अभी, जो देख रहे है , सुन रहे है और समझ भी रहे है । “मुल्क” मूवी का सब्जेक्ट और उसको फिल्माने का ढंग, जैसा ट्रेलर से साफ हो रहा है कि रियलिस्टिक सिचुऐशन से सीधे तौर पर रूबरु करवा रहा है । और उम्मीद है कि उम्मीद के मुताबिक असर होगा लोगो पर मूवी का।
मूवी मे ताप्सी पन्नू , ऋषि कपूर, प्रतिक बब्बर का अभिनय अपने किरदार के साथ इंसाफ करता दिख रहा है ।आतंकवाद और शक के बिना पर बेकुसुर, अन्याय से लड़ता एक परिवार जो कि अपनी बेगुनाही और देशप्रेम, वफादारी को साबित करने वाली और एक न खत्म होने वाली जद्दोजहद मे लगा हुआ है। इसमे उनकी वकील जो कि हिंदू है और उस मुस्लिम परिवार की बेगुनाही साबित करने के संघर्ष मे उनका साथ देती दिखाई दे रही है । एक बेहतरीन मुद्दा जिससे अभी तक
ज़्यादातर लोग अनजान थे, वो खुलकर सामने आयेगा।
नफरत और देश से मौहब्बत का ज़बरदस्त प्रदर्शन ।
ताप्सी पन्नू भी यकीनन इस फिल्म लोगो का खासा विरोध झेलती नज़र आयेंगी । Rajeev Yadav सर जो एक रिहायी मंच नामक संगठन से जुडे़ हुए है और इस संगठन का काम भी आतंकवाद के झुठे कैस मे फंसे बेगुनाहो की रिहायी कराना है । इस सब मे राजीव सर को भी लोगो का बहुत विरोध झेलना पड़ता है , इतना कि अब तो बाकायदा यूपी पुलिस उनको और उनके परिवार को जान से मारने की धमकी तक दे रही है । ऐसे लोग चुपचाप अपना काम किये जा रहे है , ताप्सी पन्नू का किरदार ऐसे बहुत से लोगो को इंगित कर रहा है ।
आतंकवाद बहुत गंभीर मुद्दा है इसमे कोई दो राय नही है लेकिन बेकुसुर और बेगुनाह होने के बाद भी देश के एक समुदाय को , लोगो को टारगेट किया जाता है , दाढी़ भी बडी़ हुई है , कुर्ता पजामा रेग्यूलर पहनता है, उर्दू के लफ्जो़ का ज़्यादा इस्तेमाल कर रहा है तो आतंकवादी होगा , बुर्के वाली है या हिजाबा है तो संदिग्ध हो सकती है , किसी मौहल्ले मे मुस्लिम कम्यूनिटी के ज्यादा लोग रह रहे हो तो वो मिनी पाकिस्तान, मुसलमानो के यहां ज़्यादा बच्चे किये जाते है ताकि दो चार को जिहाद (जो कि जिहाद की सही परिभाषा नही है ) के लिए आंकवादी बनाया जा सके । ये वो बाते है जो मैने सुनी है आतंकवाद की आढ़ मे जबरदस्त तरीके से आम जन, बेगुनाह लोगो को टोर्चर किया जाता है। जिसके जि़म्मेदार बस कुछ मुट्ठी भर लोग है जो आधी आबादी को बहकाने भड़काने मे लगे है । मेरे अधिकतर हिन्दू दोस्त है और धार्मिक विभिन्नताऐं होने पर हमने इसको अहंकार का मसअला नही बनने दिया बल्कि इस दोस्ती से जुड़ने के बाद हम लोगो को तो जैसे वैराइटी मिल गयी हो त्यौहारो मे , पकवानों मे ।
खैर कुछ साथी कहते है कि नही ये कोई विषय नही है क्योकि वर्तमान मे ये समस्या अस्तित्व मे है ही नही और सिर्फ पूर्वाग्रह है जो ऐसे विषय को गंभीर मुद्दा बनते देखने पर बेकार मे मजबूर कर रहा है। ये जानने के बावूजूद कि मैने भी इस तकलीफ को झैला है जब पाकिस्तानी होने का टैग लगा था मुझ पर और देशद्रोही भी , बिना किसी वजह के और बाकि लोगो की चुप्पी ने उन लोगो का साथ दिया था।
सुनिये सर ये रिलीवेंस है वर्तमान समय में , आप अगर इसको अनदेखा अनसुना कर रहे है तो कोई फर्क नही पढ़ता , सच हरगिज़ आपकी सहमती का मोहताज नही और ये सच है कि आज हर दूसरे मुसलमान व्यक्ति को अपनी सच्चाई की गवाही समय समय पर देनी पड़ती है, देशप्रेम की सुबुत देना होता है ।
हां कही कुछ थोडा़ बहुत अलग मान्यताये है लेकिन आतंकवाद को कही से भी और किसी भी तरह से हरगिज़ प्रोत्साहन नही देता इस्लाम धर्म।
यही पढा़या गया था जब ग्रेजुएशन हिन्दी पत्रकारिता के दौरान “हिन्दी सिनेमा का इतिहास ” विषय “पर तैयारी की थी कि सिनेमा समाज का दर्पण है ऐसे बहुत से उदाहरण है देने के लिए हिंदी सिनेमा मे , लेकिन मै फिलहाल “मुल्क” मूवी का ही उदाहरण दूंगी। ऐसा माना जाता है सिनेमा का समाज पर खासकर युवाओ पर गहरा प्रभाव पड़ता है । उम्मीद है कि मुल्क फिल्म एक अलग समस्या से लोगो का सामना करवायेगी और प्रभावित भी करेगी । उम्मीद करती हूं कि लोग इस सब्जेक्ट को भी एक गंभीर विचारणीय मुद्दा समझेंगे।
शबनम ,
फेसबुक यूज़र,
स्वतंत्र पत्रकार