मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के यौम-ए- वफात के अवसर पर जामिया रहमत घघरोली मे ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल सहारनपुर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए मौलाना डॉ, अब्दुल मालिक मुगीसी जिला अध्यक्ष ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल सहारनपुर ने उनकी जिन्दगी पर प्रकाश डाला.
कहा कि मौलाना आजाद का नाम उन मुस्लिम नेताओं के बीच सुनहरे शब्दों में लिखा हुआ है जिन्होंने भारत की राजनीति में अपनी छाप छोड़ी थी। उनका जन्म 11 नवंबर, 1888 को मक्का शहर में हुआ था। वे हिंदू मुस्लिम एकता के मामले में हमेशा सबसे आगे रहें।
अपने शानदार भाषणों के माध्यम से, उन्होंने लोगों में नई जान फूंक दी और स्वतंत्रता के लिए जागरूकता पैदा की। उन्होंने स्वतंत्रता के साथ भारत के विभाजन के दौरान सांप्रदायिक तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो लोगो को यह विश्वास दिलाने में सफल रहे कि यह आपका देश है और आप इसमें रहौ।
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अक्टूबर 1947 में जब हज़ारों की संख्या में दिल्ली के मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे , तब जामा मस्जिद की प्राचीर से मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया , उनके उस भाषण का इतना ज़बरदस्त असर हुआ कि जो लोग पाकिस्तान जाने के लिए अपना सामान बाँध कर जा चुके थे.
स्वतन्त्रता और देशभक्ति की एक नई भावना के साथ घर लौट आए और इसी मुल्क में जीने – मरने की कसम खा ली .. !
उनहोने उस समय कहा कहा था कि जामा मस्जिद की ऊँची मीनारें तुमसे पूछ रही हैं कि कहाँ जा रहे हो, तुमने इतिहास के पन्नों को कहाँ खो दिया , कल तक तुम यमुना के तट पर वज्र किया करते थे और आज तुम यहाँ रहने से डर रहे हो,
आईये वादा करें कि यह देश हमारा है, कि हम इसके लिए हैं और इसकी नियति के मूलभूत निर्णय हमारी आवाज के बिना अधूरे रहेंगे।
महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू उनके उदात्त विचारों के कायल थे और देश के हर मुद्दे पर उनकी राय पूछते थे।
वह भारतीय इतिहास में पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने भारत के शिक्षा मंत्री के रूप में अपनी सभी क्षमताओं का उपयोग किया और फिर पीढ़ियों के निर्माण और सुधार के उद्देश्य से एक प्रक्रिया शुरू की، इस उद्देश्य के लिए उन्होंने राष्ट्र को शिक्षा के लिए तैयार किया
कहा कि जब तक हमारा राष्ट्र शिक्षा के साथ प्रबुद्ध नहीं होगा, तब तक वह समय के साथ तालमेल नहीं रख पाएगा।उन्होंने 1951 में खड़गपुर इंस्टीट्यूट ऑफ हायर टेक्नोलॉजी की भी स्थापना की जिसे बाद में इंस्टीट्यूट ऑफ हायर टेक्नोलॉजी खड़गपुर के नाम से जाना जाने लगा।
जिला अध्यक्ष मिल्ली काउंसिल ने आगे कहा के मौलाना आज़ाद एक धार्मिक विद्वान, राजनीतिज्ञ, पत्रकार, सुधारक, लेखक और वक्ता थे। मौलाना आज़ाद को बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ उर्दू लेखकों में से एक माना जाता है। उनहो ने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें गुबारे खातिर, इंडिया वंस फ़्रीडम (अंग्रेजी), तज़किया और तर्जुमान-उल-कुरान शामिल हैं।
उनके विचार में, स्वतंत्र भारत में शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य नई पीढ़ी में मानसिक जागरूकता पैदा करना था। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने कहा था कि सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद,
मैं समझ गया कि शिक्षा का काम सबसे महत्वपूर्ण है और हमें अब तक इस काम से दूर रखा गया है।मौलाना कहते थे कि शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य जीविका अर्जित करना नहीं है, बल्कि शिक्षा का उपयोग व्यक्तित्व निर्माण के लिए भी किया जाना चाहिए और यह शिक्षा का सबसे उपयोगी पहलू है और यह आर्थिक और सांस्कृतिक प्रणाली में भी सुधार लाएगा।
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मौलाना अबू अल-कलाम का निधन आजादी के लगभग ग्यारह साल बाद 22 फरवरी, 1958 को हुआ था। बेशक, उनकी मृत्यु के साथ, जहां देश ने एक दुर्लभ हीरा खोया, वहीं मुस्लिम राष्ट्र ने अपनी आवाज खोई।
एक सक्रिय सक्षम नेता को खोया जिसकी आज तक भरपाई नहीं होपाई। लेकिन मोजुदा स्थिति की विडंबना देखिए कि जिस व्यक्ति मुजाहिद ने प्रिय मातृभूमि के अस्तित्व के लिए कई बलिदान दिए, उसे आज एक तरह से, जाने-अनजाने में भुला दिया जा रहा है !
मौलाना की बातें और उनके लेखन हमें हमारे भविष्य के लिए चिंतित कर रहे हैं और हमें यह संदेश दे रहे हैं कि अगर हम अपने सपनों को सही अर्थों में साकार करना चाहते हैं तो हमें शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने की आवश्यकता है। हमें राष्ट्र के गौरव के लिए अपना रास्ता खोजना होगा और इसके लिए हमें एक शैक्षिक जागरूकता अभियान चलाना होगा।