अब जब नेहरू को हर तरह से बदनाम किया जा चुका है, तरह-तरह के झूठ लोगों के दिमाग़ में भरे जा चुके हैं, कहा नहीं जा सकता कि नेहरू पर आई यह किताब उस झूठ का कितना मुक़ाबला करेगी। पर यह किताब उसी झूठ से लड़ने आई है।
2014 के बाद नेहरू को नफ़रत के प्रतीक के रुप में गढ़ा गया। अफसोस कि कांग्रेस पार्टी नेहरू के विरासत को लेकर खड़ी नहीं हो सकी। उसके जवाब में एक ढंग का अभियान तक नहीं चला सकी।
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नेहरू की आलोचना उनके जीवनकाल में ही हुई और उनके बाद हुई लेकिन नेहरू को लेकर इस तरह का प्रपंच कभी नहीं फैलाया गया। नेहरू को ख़त्म कर नेहरू जैसा या उनसे बड़ा बनने की चाह का नतीजा यह है कि आज दुनिया के हर बड़े अख़बार में भारत सरकार के पहले निरकुंश, तानाशाही का इस्तमाल होने लगा है।
प्रो अग्रवाल की यह किताब अंग्रेज़ी में आ चुकी है। काफी लोकप्रिय रही। अब हिन्दी में आई है। राजकमल प्रकाशन से। यह किताब उस धारणा को तोड़ती है कि सारा इतिहास नेहरू का ही लिखा गया। लिखा गया होता तो पुरुषोत्तम अग्रवाल को इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती।
दरअसल आज़ादी और आज़ादी के बाद का इतिहास इस तरह से लिखा ही नहीं गया कि केवल व्यक्ति नज़र आए। 2014 में आई राजनीति को पढ़ाई लिखाई से मतलब नहीं था इसलिए इतिहास को व्यक्तियों में समेटा गया ताकि जयंति मनाने, मूर्ति बना कर माला पहनाने में आसानी हो और दुनिया को लगे कि इतिहास के ज्ञाता वहीं हैं।
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सारा ज़ोर प्रात: स्मरण पर है, चिन्तन मनन पर नहीं। ‘कौन है भारत माता’ लोकप्रिय पुस्तक हो चुकी है। हिन्दी के पाठकों के पास यह पुस्तक तो होनी ही चाहिए। 499 रुपये की है और एमेज़ान पर मिल रही है।