राज्य सभा में प्रधानमंत्री का दिया भाषण ख़राब तो है ही उससे कहीं ज़्यादा चिन्ताजनक है। प्रधानमंत्री ने भाषण को संयमित स्वर में पेश कर विद्वता का आभा प्रदान करने की कोशिश की लेकिन जो विचार झलके हैं वो बेहद ख़तरनाक हैं।
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अगर देश के प्रधानमंत्री को आंदोलनों में जाने वाला परजीवी नज़र आता है तो यह संकेत है कि वो खुद उन आशंकाओं को मान्यता दे रहे हैं जो उनकी शासन व्यवस्था को लेकर उठती रही हैं। गोदी मीडिया ने किसानों को आतंक’वादी कह कर जनता से अलग कर दिया।
जो थोड़ी बहुत जनता किसानों के साथ खड़ी थी उसे आंदोलनजीवी परजीवी कह कर किसानों से अलग किया जा रहा है। कमाल है किसानों के साथ खड़ा होना इतना मुश्किल है कि आपको देश के प्रधानमंत्री परजीवी कहेंगे। एक आदमी अलग अलग आंदोलनों में जाता है।
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उसे सपोर्ट करता है। क्या वह आंदोलनजीवी परजीवी होता है? जो जनता प्रधानमंत्री को इतना वोट देती है उसी से चिढ़ने की वजह समझ नहीं आती।