नई दिल्ली : पीएम मोदी ने कृषि बिलों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों और सरकार के बीच जारी गतिरोध के लिए इसकी आड़ में राजनीतिक हित साधने वाले लोगों को दोषी ठहराया.
पीएम मोदी ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर चिंताओं की जगह हिंसा के आरोपियों की रिहाई और राजमार्गों को टोल मुक्त बनाने जैसे असंबंद्ध मुद्दे इसमें हावी होने लगे हैं.
ये भी पढ़ें : बोले कांग्रेस नेता- ‘बिहार में गोवा से भी ज्यादा बिकती है शराब’
मोदी ने कहा कि सरकार उन लोगों के साथ भी बातचीत करने को तैयार है जो अलग विचारधारा के चलते सरकार के खिलाफ हैं लेकिन यह बातचीत ‘तर्कसंगत, तथ्यों और मुद्दों’ पर आधारित होनी चाहिये.
पीएम मोदी ने दावा किया कि बड़ी संख्या में देश के किसानों ने इन तीन कृषि कानूनों का स्वागत किया है और वे इसके फायदे भी उठा रहे हैं.
मोदी ने कहा कि हाल कि दिनों में असम, राजस्थान ओर जम्मू एवं कश्मीर सहित विभिन्न राज्यों में हुए स्थानीय निकाय के चुनावों में बीजेपी को जीत मिली और इन चुनावों में भाग लेने वाले मतदाता किसान थे.
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस पर ‘पीएम किसान सम्मान निधि’ योजना की नयी किस्त में नौ करोड़ से अधिक किसानों के लिए औपचारिक रूप से 18,000 करोड़ रुपये की राशि जारी करने के बाद पीएम मोदी वीडियो कांफ्रेस के जरिए देश के किसानों को संबोधित कर रहे थे.
मोदी ने कहा कि देश की जनता ने जिन राजनीतिक दलों को नकार दिया है वे अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए किसानों को गुमराह कर रहे हैं.
किसानों के प्रदर्शन् का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि जब आंदोलन की शुरुआत हुई थी तब नये कानूनों को लेकर उनकी एमएसपी सहित कुछ वाजिब चिंताएं थीं.
ये भी पढ़ें : BCCI की AGM से पहले बड़ा फैसला, जनरल मैनेजर केवीपी राव को बोर्ड छोड़ने के लिए कहा
लेकिन बाद में इसमें राजनीतिक लोग आ गए और उन्होंने किसानों के कंधों पर बंदूक रखकर चलाना आरंभ कर दिया और असंबंद्ध मुद्दों को उठाना आरंभ कर दिया,
मोदी ने कहा ‘आपने देखा होगा कि जब आंदोलन की शुरुआत हुई थी तो उनकी मांग एमएसपी गारंटी की थी, उनके मुद्दे वाजिब थे क्योंकि वे किसान थे, लेकिन अब इसमें राजनीतिक विचारधारा के लोग हावी हो गए,’
मोदी ने कहा ‘एमएसपी वगैरह को अब किनारे रख दिया गया है, अब वहां क्या हो रहा है, वे हिंसा के आरोपियों की जेल से रिहाई की मांग कर रहे हैं,,,वे राजमार्गों को टोल-फ्री करवाना चाहते हैं, किसानों की मांग से वह दूसरी मांगों की ओर क्यों चले गए?’