दिमाग़ों में भरा हुआ सांप्रदायिक ज़हर कोरोना से भी अधिक ख़तरनाक है। ऐसे लोगों का कोरोना कुछ नहीं बिगाड़ सकता, क्योंकि ये पहले से ही दिमाग़ी रूप से विक्लांग हो चुके हैं। लाॅकडाउन में ₹10 का बीड़ी का बंडल ₹12 का क्यों दिया जा रहा है, इसे लेकर दुकानदार अरुण और मोइनुद्दीन नाम के शख्स के बीच विवाद हुआ था।
अरुण के दो और चेलों ने उसके जिस्म पर सिक्के से निशान बना दिये, और फिर अफवाह फैला दी कि कोरोना ग्रस्त मुईनुद्दीन ने अरुण और उसके साथियों पर थूका है, काटा है। वह तो भला हो पुलिस में मौजूद ईमानदार अफसरों का जिनकी बदौलत सच्चाई सामने आ गई, और अरुण समेत उसके दोनों गुर्गे गिरफ्तार किए गए।
इस तरह के ज्यादातर मामले ऐसे ही हैं, आज मेरी इस बात को याद रख लेना, गाजियाबाद में जमातियों द्वारा नर्सों के साथ होने वाली तथाकथित छेड़ छाड़ का मामला भी ऐसे ही झूठा साबित होगा, साथ ही और भी इस तरह के मामले झूठे साबित होंगे।
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लेकिन अब इन मामलों के झूठा साबित होने से कोई फर्क पड़ने वाला नही है, क्योंकि मीडिया के प्रोपगेंडा युद्ध, ह्वाटसप यूनिवर्सिटी ने कोरोना को मुसलमान बना दिया है। अब यह चर्चा आम हो गई है कि कोरोना तब्लीगी जमात यानि मुसलमान फैला रहे हैं।
मीडिया द्वारा मुसलमानों के खिलाफ छेड़े गए प्रोपेगेंडा वाॅर (दुष्प्रचार युद्ध) ने घर घर, गांव-गांव, गली मौहल्ले तक इस चर्चा को पहुंचा दिया है। दिमाग़ी रूप से अपाहिज़ लोग आंखें फाड़ फाड़कर बेग़ैरती से कह रहे हैं कि मुसलमान कोरोना फैला रहे हैं, यह तो अच्छा हुआ कि जल्द ही मरकज़ का भंडाफोड़ हो गया, नहीं तो पहले कोरोना फैलाते और उसके बाद पाकिस्तान से हमला कराते।
सोचिए! इस्लामोफोबिया से ग्रस्त इन दिमाग़ी विक्लांगों का कोरोना क्या बिगाड़ पाएगा? मेरे गांव के आस-पास एक दो गांवों में सिर्फ एक ही वर्ग रहता है, उन गांवों में मुसलमानों का जाना प्रतिबंधित कर दिया गया है।
इन गांवों के लोग गांव में प्रवेश करने वाले रास्तों पर लाठी डंडे लेकर, रास्ता रोककर बैठे हुए हैं, इसका खामियाजा न सिर्फ मुसलमान को बल्कि, सब्जि वाले, फेरी वाले को भी भुगतना पड़ रहा है। यह सब मीडिया के प्रोपेगेंडा युद्ध की बदौलत हो पाया है।
दिमाग़ों में जो ज़हर भरा गया था, वह अब कोरोना के नाम पर बाहर आ रहा है। बीते रोज़ उत्तर प्रदेश के शामली के एक गांव में एक दाढ़ी वाले शख्स की जाति विशेष के लोगों द्वारा बेरहमी से पीटने का वीडियो सामने आया है।
दिमाग़ी रूप से विक्लांग हो चुके ये लोग उस निहत्थे, असहाय युवक को पीटते हुए भद्दी गालियां दे रहे हैं, और आरोप लगा रहे हैं कि यह कोरोना फैलाने आया था। हद तो यह है कि इस तरह के अमानवीय कृत्य करने वालो ने बेखौफ होकर यह वीडियो बनाया और फिर उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट किया।
अंदर से सड़ चुके समाज का कोरोना कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा, जो समाज पहले से ही एक समुदाय विशेष को विलेन के तौर पर देखता हो उसने इस महामारी का ठीकरा भी मुसलमानों के सर फोड़ा दिया है।
कैसी विडंबना है कि भारत के अलावा दुनिया भर में कोरोना ने इंसान के फेफड़ों पर हमला किया है, लेकिन भारत में इसी कोरोना ने एक बहुत बड़े वर्ग के दिमाग़ों को अपाहिज़ बना दिया है।
कोरोना, सत्ताधारी दल और मीडिया इन तीनों में एक समानता यह है कि तीनों यही चाहते हैं कि सामाजिक दूरी बनी रहे। यही कारण है कि एक बड़ा वर्ग विवेकहीन हो गया।
आने वाला वक़्त मुसलमानों के लिए और इस देश के लिए बहुत भारी है। क्योंकि मीडिया के प्रोपगेंडा वाॅर ने जो ज़हर फैलाया है, उसका परिणाम मुसलमान को ही भुगतना है।
हो सकता है अब दाढ़ी, टोपी वाले शख्स की कोरोना ग्रस्त होने अथवा कोरोना फैलाने वाला बताकर लिंचिंग होना आम हो जाए, हो सकता है तब्लीगी जमात पर हमले होना शुरू हो जाएं, अभी लाॅक डाउन है, जब लाॅकडाउन खुलेगा तब बस, ट्रेन में यात्रा करने वाले मुसलमानों के साथ लिंचिंग की घटनाएं सामने भी आ सकतीं हैं।
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सवाल फिर वही है कि इसका काउंटर करने के लिए मुस्लिम मठाधीश क्या क़दम उठाऐंगे? क्या वे इस प्रोपेगेंडा वाॅर के कुचक्र को तोड़ने के लिए कोई रणनीति अपनाऐंगे या फिर ‘सब अल्लाह मालिक है’ कहकर अपना नाकारापन छिपाऐंगे? मठाधीशों को समझना होगा कि उनके पास अब ज्यादा वक़्त नहीं है।
उन्हें जल्द से जल्द इसका काउंटर तलाशना होगा, वरना जिस स्पीड से मीडिया का प्रोपेगेंडा वाॅर मुसलमानों के खिलाफ चल रहा है, उसका नतीजा यह होगा कि इस देश में मुस्लिम पहचान होना लिंचिंग होने की ज़मानत बन जाएगा।
ये तमाम कांस्प्रेसी झुठलाई जा सकती थी अगर एक वर्ग विशेष की यह इच्छा न होती कि जो म्यांमार में असिन विराथू ने किया वो भारत में भी करेंगे। इसलिए सोचिए, और रणनीति बनाईए…विपक्ष के भरौसे बैठना खुद को धोखा देने से कम नहीं है, बात बहुत आगे तक जा चुकी है।