नई दिल्ली: जस्टिस के.एम जोसेफ के मुद्दे को लेकर विवाद अभी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इस मुद्दे पर बुधवार को जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने सीजेआई दीपक मिश्रा से मुलाकात की। इस मीटिंग में जस्टिस जे चेलमेश्वर मौजूद नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट के चारों जज मुख्य न्यायधीश पर दबाव डाल रहे हैं कि वो जस्टिस के.एम जोसेफ का नाम मोदी सरकार को वापस भेजे। नियम के मुताबिक, अगर कॉलेजियम दोबारा किसी जज का नाम केंद्र सरकार के पास भेजती है तो सरकार को उसे अपनाना ही होता है।
गौरतलब है कि इस से पहले 2 मई की बैठक के बाद जस्टिस जोसेफ के मामले पर पहली मीटिंग थी। 2 मई को कोलेजियम की बैठक में जस्टिस जोसेफ के मामले पर कोई फैसला नहीं हो सका था और करीब 45 मिनट तक चली कोलेजियम की बैठक बेनतीजा रही थी। वहीं इस से पहले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चेलमेश्वर सीजीआई को के.एम जोसेफ का नाम सरकार को दोबारा भेजने के लिए पत्र लिख चुके हैं। कॉलेजियम में जस्टिस केएम जोसेफ के नाम पर सर्वसम्मति दिखाई दे रही है, इसलिए सीजेआई दीपक मिश्रा पर औपचारिक कॉलेजियम बैठक बुलाने का दबाव भी है।
बता दें, कि जस्टिस केएम जोसफ उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश हैं। उन्होंने ने ही अप्रैल 2016 में मोदी सरकार के उस फैसले को रद्द किया था जिसके तहत उसने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। जस्टिस केएम जोसेफ ने मोदी सरकार के फैसले को गलत बताते हुए राज्य में कांग्रेस की सरकार की बहाली की थी। इसी साल जनवरी में कॉलेजियम (जजों को नियुक्त करने वाली व्यवस्था) ने जस्टिस केएम जोसफ का नाम सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा था। लेकिन सरकार ने फरवरी में कॉलेजियम को नाम पर फिर से पुनर्विचार करने के लिए कहा।
केंद्र सरकार ने जज इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति को तो हरी झंडी दिखा दी लेकिन के।एम जोसेफ की नियुक्ति सरकार नहीं कर रही है। सरकार ने कहा कि उन्हें लगता है कि जोसफ पद के लिए वरिष्ठ नहीं हैं। जबकि ‘द हिन्दू’ ने 5 मार्च को अपनी एक खबर में बताया कि जस्टिस केएम जोसेफ सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए अनुभव के लिहाज़ से सबसे ज़्यादा वरिष्ठ हैं। सवाल ये भी है कि जब सीजीआई खुद जोसेफ का नाम सुप्रीम कोर्ट में जज के लिए दिया था तो अब वो सरकार का पक्ष लेते क्यों दिखाई दे रहे हैं? जस्टिस जोसेफ की नियुक्ति पर फैसला लेते हुए जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि सरकार ने उनका नाम अस्वीकार कर के कुछ गलत नहीं किया। इसके बाद सीजीआई मिश्रा की काफी आलोचना हुई। चार पूर्व मुख्य न्यायधीशों ने भी उनके रवैय्ये पर सवाल उठाए थे।