पर्यावरण जिंदा रहेगा, शुद्ध रहेगा तो ही हम मानव की जिंदगी जिंदा रहेगी,
हम शकुन व स्वस्थ जीवित रहेंगे। हरा रंग पर्यावरण की निशानी है, जीवन की
निशानी है इसलिए हरियाली तो रहनी ही चाहिए, हरियाली नहीं तो जीवन नहीं,
यह मेरे जीवन की भी कहानी है, मैंने जब रेलवे विभाग से यह कहा कि मैं
रेलवे प्रांगण को ‘नीम’ की शुद्धता से भरना चाहता हूँ तो तुरंत उन्होंने
लिख कर दिया कि हमारे विभाग के प्रांगण में जहाँ चाहें ‘नीम’ लगायें,
वैसे तो मुझे महाराष्ट्र सरकार व बृह्नमुंबई महानगरपालिका ने भी लिख कर
दिया है कि आप हमारे प्रांगण में भी नीम लगायें, इस भावना व विचार की
सफलता के लिये मैंने मुंबईकरों से सहयोग की अपील भी की है।
आज मुंबई में विकास की बहुत ही जरुरत है, आवागमन मानों थम सा गया है, घण्टों रास्तों पर खड़ा रहना पड़ता है, गाड़ियां बढती जा रही है, जनसंख्या का बढ़ना तो रुक सकता नहीं, पर रास्ते तो वही के वही हैं, फिर क्या किया जाये, भारी
समस्या का निदान वैसे हो? कहते हैं मुम्बई २४ घण्टे दौड़ती है, सही है,
अब दौड़ने के लिए मुंबई में जगह कहॉ? जबकि चलने को जगह नहीं बची, देखना है
तो कभी मुंबई का अंधेरी स्टेशन का नजारा जरुर देख लें।
विज्ञान का सहारा लेकर मानव ने २ मंजीला रास्तों का निर्माण शुरु किया, ताकि दौड़ना सुनिश्चित रह सके, इसलिए बड़े-बड़े उड़ान पुल का निर्माण शुरु हुआ, मेट्रो
रेल बना, उसी का एक रुप कार शेड, जो आरे के जंगलों से जाना था, जिसके लिए
करीब २७०० पेड़ रुकावट बन रहे थे, उन्हें काटना जरुरी हो गया था, सरकार की
भी मजबूरी थी, विकास जो जरुरी था, समय की मांग जो थी, राजनैतिक हलको में
हलचल मची, कुछ कथित पर्यावरण पे्रमी सड़कों पर उतर आये, पुलिस को बल का प्रयोग करना पड़ा, यहॉ तक की अदालत ने भी विकास का ही साथ दिया।
सरकार ने कहा कि हम १५००० पेड़ लगायेंगे, जिसका साथ ‘जिनागम फाउंडेशन’ के सहयोगी दे रहे हैं, आरे को जंगल बनाने को आतुर हैं हम मुंबई कर, पर विकास को साथ में लेकर, ना कि विरोध कर। मैं बहुत ही दु:खित हूँ कि २६०० पेड़ काटे गये
पर किसी के स्वफायदे के लिए नहीं, बल्कि मुंबई के विकास के लिए, भविष्य
के लिए, इसलिए मैंने यह कहा कि १५००० पेड़ लगायें, सभी पर्यावरणविद साथ
दें ताकि मेरा आरे का जंगल बरकरार रहे, आबाद रहे, हरा-भरा रहे।