पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने सोमवार को इस्लामाबाद में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक दिवस पर आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि बंदूक़ की नोंक पर या ज़बरदस्ती शादियां करके किसी को मुसलमान बनाना ग़ैर-इस्लामी है।
इमरान ख़ान ने कहा है कि ये ताक़त तो अल्लाह ने पैगंबर तक को नहीं दी थी कि किसी को ईमान में लाए। प्रधानमंत्री ख़ान ने कहा कि पैगंबर का भी काम केवल पैग़ाम देना था और ईमान तो अल्लाह की नेमत है।
डॉन की खबर के मुताबिक खान ने कहा कि पैगंबर ने खुद भी अल्पसंख्यकों को धार्मिक स्वतंत्रता दी थी और उनके उपासना स्थलों को सुरक्षा प्रदान की थी।
उन्होंने कहा कि हिंदू मंदिरों और सिख गुरुद्वारों का जीर्णोद्धार किया जाएगा और इनका संरक्षण किया जाएगा। इमरान खान ने चरमपंथियों का विरोध करते हुए कहा कि इस्लाम अल्पसंख्यकों के जबरन धर्म परिवर्तन की इजाजत नहीं देता। उन्होंने कहा कि इन कट्टरपंथियों की मानसिकता को बदलने की जरूरत है. इस्लाम शांति का धर्म है, बाध्यता का नहीं। जो लोग ताकत के जोर पर दूसरों को धर्म बदलने पर मजबूर करते हैं, वे इस्लाम को सिरे से जानते ही नहीं।
समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक उन्होंने कहा कि सब जानते हैं कि लोगों ने इस्लाम के नाम पर दुकानें खोली हुई हैं। सुनते हैं कि सिंध में लोगों को जबरदस्ती मुसलमान बनाने की घटनाएं होती हैं। लोगों को जबरदस्ती मुसलमान बनाने वाले इस्लाम को नहीं जानते। हम कैसे किसी को जबरदस्ती मुसलमान बनाने का मामला अपने हाथ में ले सकते हैं?
इमरान ख़ान की इन बातों पर समारोह में मौजूद लोगों ने ख़ूब तालियां मारीं। इमरान ख़ान ने कहा, ”जब हम मदीना की रियासत की बात करते हैं तो आधुनिक रियासत की बात करते हैं। मदीना की रियासत में एक ख़लीफ़ा भी क़ानून के नीचे था। पाकिस्तान इसलिए नहीं बना था कि पहले यहां एलीट हिन्दू थे और उनकी जगह अब एलीट मुसलमानों ने ले ली। मदीना की रियासत में भी अल्पसंख्यकों से भेदभाव नहीं किया जाता था।”
इमरान ख़ान ने कहा, ”मैं नॉर्वे और फ़िनलैंड जैसे देशों की सभ्यता और समाज को देखता हूं तो 1400 साल पहले मदीना की न्यायप्रिय व्यवस्था की याद आती है।”