राफेल डील पर एक बार फिर अंग्रेजी अख़बार ‘द हिंदू’ ने खुलासा किया है. अख़बार ने दावा करते हुए कहा है कि राफेल डील यूपीए सरकार के वक़्त की तय की गई कीमत और शर्तो पर खरी नहीं उतरती है. साथ ही इस बात का भी खुलासा किया है इसे लेकर तीन अधिकारियों ने अपनी असहमति जताई थी फिर भी ये डील हुई. दरअसल राफेल डील को लेकर आपत्ति करने वाले तीन अधिकारियों ने अपनी असहमति जताते हुए एक जून (2016) को डिसेंट नोट दिया था.

जिसमें उनका कहना था कि ‘एस्कलेशन के आधार पर फ्रांस सरकार ने विमानों की जो अंतिम कीमत तय की है, वह पहले तय बेंचमार्क कीमत से 55.6 फीसदी ज्यादा है. आपूर्ति के समय तक एस्कलेशन के आधार पर यह कीमत और बढ़ सकती है. अख़बार का कहना है कि भारतीय पक्ष राफेल डील में एक बेंचमार्क कीमत तय करना चाहता था, लेकिन फ्रांसीसी पक्ष ने इसको एस्कलेशन यानी बढ़ते रहने के फॉर्मूले में बदल दिया. इस सौदे को लेकर रक्षा मंत्रालय के तीन एक्सपर्ट अधिकारी थे जिनमें एक एडवाइजर थे एमपी सिंह जो इंडियन कॉस्ट एकाउंट्स सर्विस में संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी के पद पर थे, दूसरे एक्सपर्ट थे एआर शुले जोकि फाइनेंशियल मैनेजर (एयर) के तौर पर इस डील में शामिल थे वहीं एक्विजिशन मैनेजर (एयर) और संयुक्त सचिव का काम राजीव वर्मा के जिम्मे था. इन तीनों ने राफेल डील होने से कुछ महीने पहले यानि की एक जून साल 2016 को इस बात की शिकायत डिप्टी चीफ ऑफ एयर स्टाफ (DCAS) को डील को लेकर हुई बातचीत पर अपना कड़ा विरोध जताते हुए नोट भेजा था.

अख़बार ने इसी आठ पन्नो के डिसेंट नोट का हवाला देते हुए ये बात कही है. अब सवाल उठता है जब तीन अधिकारियों ने असहमति जताई थी तो इसके बाद भी मोदी सरकार ने इस डील को क्यों किया? दूसरा सवाल ये उठता है कि आखिर मोदी सरकार ने डील होने से पहले राफेल डील करीब 55 फीसदी ज्यादा कीमत पर क्यों थी? अख़बार के मुताबिक भारतीय निगोशिएशन टीम (INT) कुल सात लोग शामिल थे, जिनमें से तीन सदस्यों का मानना था की फ्लाइवे कंडीशन में 36 राफेल विमान हासिल करने के लिए मोदी सरकार का सौदा UPA सरकार द्वारा दसॉ एविएशन से 126 विमान खरीद के प्रस्ताव से ‘बेहतर शर्तों’ पर नहीं था. इन अधिकारियों ने निष्कर्ष रखा था कि नए सौदे में 36 राफेल विमान में से पहले चरण में 18 विमान की आपूर्ति का शेड्यूल भी यूपीए सरकार के दौरान मिले प्रस्ताव की तुलना में सुस्त है.