पुलवामा में हुए आ!तंकी हमले के बाद जहां पूरा देश एकजुट होकर इस हमले के विरोध में खड़ा नज़र आ रहा है, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस दुख की घड़ी में भी हिंदू-मुस्लिम करने से बाज़ नहीं आ रहे। सोशल मीडिया पर कुछ असामाजिक तत्व लोगों को भड़काने के लिए सीधे तौर पर इस हमले के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि इस हमले को लेकर सोशल मीडिया पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने वालों को टीवी पर फ्लैश होने वाले शहीदों के नाम भी नज़र नहीं आ रहे। 44 शहीदों की फेहरिस्त में एक नाम जम्मू के लाल नसीर अहमद का भी है। जो कि एक मुसलमान थे।

जिन्होंने अपनी जान पर अपने वतन को तरजीह दी और शहादत का जाम पीकर दुनिया को अलविदा कह दिया। राजौरी के गांव दोदासन बाला के रहने वाले 46 वर्षीय नसीर अहमद के घर में भी उस तरह मातम पसरा हुआ है, जिस तरह बाकी के 43 शही!दों का घर शोक में डूबा है। नसीर अहमद के दुनिया से जाने के बाद अब उनके बच्चे भी अनाथ हो गए हैं और उनकी पत्नी विधवा। शोक में डूबे नसीर के मुस्लिम बच्चों को तो इस बात की ख़बर भी नहीं है कि जिस देश के लिए उनके पिता ने अपनी जान क़ुर्बान कर दी, उसी देश के कुछ लोग उनके मज़हब को देश का ग़द्दार बता रहे हैं। बता दें कि नसीर अहमद सीआरपीएफ़ की 76वीं बटालियन में थे। चरमपंथियों ने जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर सीआरपीएफ़ के काफ़िले की जिस बस को निशाना बनाया था, नसीर अहमद उसके कमांडर के तौर पर तैनात किए गए थे। नसीर के बड़े भाई सिराजुद्दीन ने बीबीसी को बताया कि उस दिन नसीर की तबियत ठीक नहीं थी। मैंने फ़ोन पर उनसे लीव पर चले जाने के लिए भी कहा था ताकि वो थोड़ा आराम कर सकें। लेकिन नसीर ने अपने फ़र्ज़ को निभाना ठीक समझा और कश्मीर घाटी जाने के लिए हामी भर दी। नसीर के गांव के एक युवा ज़ाहिर अब्बास ने बीबीसी को बताया कि राजौरी के इस छोटे से गांव ने चरमपंथियों के ख़िलाफ़ एक लंबी लड़ाई लड़ी है।

उन्होंने बताया कि चरमपंथ के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ते-लड़ते इस गांव के कम से कम 50 लोगों ने अभी तक क़ुर्बानी दी है। अब सवाल यह उठता है कि सोशल मीडिया पर मुसलमानों की देश!भक्ति पर सवाल उठाने वालों को क्या नसीर अहमद और उनके गांव के वह जांबाज़ मुसलमान नज़र नहीं आते जिन्होंने आतं!कवाद के ख़िलाफ़ लड़ते-लड़ते अपनी जान कुर्बान कर दी। क्या सोशल मीडिया पर पुलवामा हमले के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराने से नसीर अहमद के परिजनों को तकलीफ़ नहीं होगी?