19 फरवरी को नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में रात 11:50 बजे मौ!त से हार जाने वाले 92 वर्षीय नामवर सिंह हमारे बीच नहीं रहे, कि हिंदी साहित्य में दूसरी परंपरा का अन्वेषण करने वाले ‘लिविंग लीजेंड’ नहीं रहे…… लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी के अनुसार, वे अज्ञेय के बाद के हिंदी के सबसे बड़े ‘स्टेट्समैन’ थे, तो अपने छोटे भाई काशीनाथ सिंह के अनुसार हिंदी के आलोचकों में उनकी जैसी लोकप्रियता अन्य किसी को नहीं मिली.
लेखक-कवि, प्रशंसक और आलोचक उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके और उनके सृजन के बारे में बताते हुए संवेदनाओं और भावनाओं के इस अतिरेक से परे, जब भी और जैसे भी, याद किया जाए, हिंदी संसार से जुड़े उनके उस असंतोष को भुलाया नहीं जा सकता.
‘हिंदी भाषा और साहित्य का काफी विस्तार हुआ है. उसकी रचनाशीलता की दुनिया भी व्यापक हुई है. कई महत्वपूर्ण लेखकों ने कुछ विश्वस्तरीय रचनाएं भी दी हैं. लेकिन अभी भी हिंदी भाषी समाज को अपने साहित्यकारों से बहुत प्यार या लगाव नहीं है.

इस रिवाज के विपरीत उन्होंने अपनी एक कविता की इन पंक्तियों में अपने तन-मन के टूटने के कारणों की पड़ताल काफी पहले ही शुरू कर दी थी…
नभ के नीले सूनेपन में,
हैं टूट रहे बरसे बादर,
जानें क्यों टूट रहा है तन!
वन में चिड़ियों के चलने से,
हैं टूट रहे पत्ते चरमर,
जानें क्यों टूट रहा है मन!

हमारे साहित्य-संसार को ऐसे कठिन समय में छोड़ गए हैं, जब उसे अपने सामने उपस्थित तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी….तो वो दुनिया को अलविदा कह गए कहना ज़रूरी है कि ‘वाद विवाद संवाद’ के रस में पगे, ‘बेचैनी और तड़प से भरते, द्वंद्व के लिए ललकारते, कभी नि:शस्त्र करते और कभी वार चूकते’ नामवर ने साहित्य-संसार में अपनी लंबी उपस्थिति के दौरान ही अपने लिए जितना अकेलापन व असहमतियां अपने लेखन या सृजन से पैदा कीं, उससे ज़्यादा अपने व्याख्यानों से पैदा कर डाली थीं. तभी तो किसी ने उन्हें ‘अचूक अवसरवादिता’ का तो किसी ने ‘तिकड़मी’ कहते थे।
इन तोहमतों को लेकर वे प्राय: कहा करते थे, ‘मैं कठघरे में खड़ा एक मुजरिम हूं.’ एक वक्तव्य में उन्होंने लोगों को यह सिखाते हुए कि ‘सत्य के लिए किसी से नहीं डरना चाहिए, गुरु से भी नहीं और वेद से भी नहीं’, कहा था कि लोगों को जितनी शिकायतें मुझसे हैं, उतनी मैं ख़ुद भी अपने आप से करता हूं- इरादे बांधता हूं, जोड़ता हूं, तोड़ देता हूं.