लोकसभा में तीन तलाक बिल को हरी झंडी दिए जाने के बाद जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैय्यद अरशद मदनी ने इसपर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि इस्लाम के मानने वालों के नज़दीक इस बिल की कोई अहमियत नहीं है, मुसलमान सिर्फ शरियत के मुताबिक चलेंगे। शनिवार को मीडिया से बातचीत को दौरान मौलाना मदनी ने कहा कि सरकार चाहे जितने कानून बना ले, लेकिन जो मुसलमान हैं, वह बिल के मुताबिक नहीं बल्कि शरियत के मुताबिक चलेंगे। इस्लाम के मानने वाले शरियत की अहमियत को समझते हैं।

मुसलमान लड़कियां जानती हैं कि तलाक के बाद अगर वह शौहर के साथ रहेंगी तो उनका हराम होगा और जो औलाद होगी वो हराम होगी तो वह इस मसले से पीछे नहीं हटेंगे। तीन तलाक बिल में तलाक देने वाले शख़्स को तीन साल की सज़ा के प्रावधान की आलोचना करते हुए मौलाना मदनी ने कहा कि हम तीन तलाक का समर्थन नहीं करते हैं, हम इसको बुरा मानते हैं और गुनाह समझते हैं, लेकिन इतना बड़ा गुनाह नहीं समझते कि उसकी बुनियाद पर शौहर को तीन साल के लिए जेल में डाल दिया जाए और उसके बच्चों और उसकी बीवी को बेसहारा छोड़ दें।

यह बेवकूफी की बात है। उन्होंने कहा कि मैं नहीं समझता कि कोई इसका समर्थन करेगा। सरकार किन बुनियादों पर यह बिल लेकर आई यह वही जाने। बता दें कि तीन तलाक बिल को लेकर विपक्ष ने भी सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए हैं। विपक्ष का कहना है कि सरकार इस बिल के ज़रिए मुसलमानों को निशाना बना रही है।

ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन के चीफ़ असद्दुीन ओवैसी ने कहा कि सरकार इस बिल के ज़रिए मुस्लिम पुरुषों को जेल भेजकर उनकी पत्नियों को सड़क पर लाना चाहती है। उन्होंने कहा कि हमारे मुल्क़ में तलाक़ के कानून में अगर किसी हिंदू को एक साल की सज़ा का प्रावधान है तो मुसलमानों के लिए ये सज़ा तीन साल क्यों रखी गई है ?