सुप्रीम कोर्ट में राम-मंदिर/बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई करने के लिए बनाई गई नई संविधान पीठ में किसी मुस्लिम जज को शामिल न किए जाने पर देवबंद उलेमा ने ऐतराज़ जताया है। देवबंद उलेमा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को चाहिए की वह इस सुनवाई में हर मजहब के लोगों को शामिल करे। इत्तेहाद उलेमा-ए-हिंद अध्यक्ष मौलाना कारी मुस्तफा ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वह 5 जजों की कमेटी में हर मजहब के लोगों को शामिल करे। हर मजहब के जज मौजूद हो तो तमाम मजहब के लोग मौजूद होंगे।

उन्होंने कहा कि यह मुद्दा कोई आम नहीं बड़ा खास मुद्दा है, जिससे हिंदुस्तानियों का अमनो-अमान जुड़ा हुआ है। इसलिए हकूमते ए हिंद को भी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट को भी चाहिए कि वे इसमें अलग-अलग मजहब के जजों को रखें, ताकि वे उस पर सही ढंग से नजर रखें और पूरे मामले पर बहुत सोच समझ कर फैसला दें। मौलाना कारी मुस्तफा ने कहा कि हमें अपने सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है, जो भी फैसला आएगा सही और मुनासिब होगा। हक पर होगा और हक तभी होगा जब तमाम मजहब के जज इसमें मौजूद होंगे। किसी एक बिरादरी के लोगों को जमा करके या एक मजहब के जजों को जमा करके कोई फैसला सही नहीं आ सकता है।

संविधान पीठ से जस्टिस ललित के अलग होने पर टिप्पणी करते हुए मौलाना कारी मुस्तफा ने कहा कि जस्टिस ललित अगर उससे हट रहे हैं तो मैं समझता हूं कि अगर कोई भी जज किसी मुकदमे से अपने आप को अलग करता है तो कहीं ना कहीं काला है। बता दें कि इससे पहले इस मामले में 10 जनवरी को हुई सुनवाई में मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ वकील राजीव धवन के ऐतराज़ जताने पर जस्टिस यूयू ललित ने ख़ुद को पांच सदस्यीय संविधान पीठ से ख़ुद को अगल कर लिया था।