पटना हाईकोर्ट ने जातीय जनगणना पर गुरुवार को रोक लगा दी। इसको लेकर कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई पूरी कर ली थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फिर से सुनवाई का निर्देश दिया था। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दूसरे विपक्षी दलों के नेता काफी समय से जातीय जनगणना कराने की मांग कर रहे थे।
नीतीश सरकार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास करा चुकी है। हालांकि, केंद्र इसके खिलाफ रही है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर साफ कर दिया था कि जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी। केंद्र का कहना था कि ओबीसी जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है।
आपको बता दें कि बिहार में जातीय गणना और आर्थिक संरक्षण चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की गई थी। जिसमें यह कहा गया था कि जातिगत जनगणना का कार्य राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।बिहार में चल रहे जातीय जनगणना पर रोक लगाए जाने के बाद पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एसडी संजय ने बताया कि इस मामले पर 3 मई को हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी कर ली गई थी।
इस दौरान पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा है कि आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है? जातीय गणना कराना सरकार के अधिकार क्षेत्र में है या नहीं? इस गणना का उद्देश्य क्या है? क्या इसे लेकर कोई कानून भी बनाया गया है? जातीय गणना पर रोक लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी।
इधर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि जाति आधारित गणना सर्वसम्मति से कराई जा रही है। हम लोगों ने केंद्र से इसकी अनुमति ली है। हम पहले चाहते थे कि पूरे देश में जाति आधारित जनगणना हो, लेकिन जब केंद्र सरकार नहीं मानी तो हम लोगों ने जाति आधारित गणना सह आर्थिक सर्वे कराने का फैसला लिया।